रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं। टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भारत की औद्योगिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। व्यवसाय से अधिक, वे अपनी सादगी, परोपकार और मानवीय दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।
उनकी वसीयत भी उनकी इन्हीं विशेषताओं को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने अपने कर्मचारियों और करीबी सहयोगियों का विशेष ध्यान रखा है। उनकी उदारता की झलक उनकी अंतिम इच्छाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
वसीयत का परिचय
रतन टाटा की वसीयत हाल ही में सार्वजनिक हुई, जिसमें उन्होंने न केवल अपने परिवार और दोस्तों को संपत्ति सौंपी, बल्कि अपने कर्मचारियों के लिए भी आर्थिक प्रावधान किए। इस वसीयत में उनका मानवीय पक्ष साफ झलकता है। उन्होंने अपने जीवनभर के सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता देने का फैसला किया।
Hindustan Times के अनुसार, रतन टाटा ने अपनी वसीयत में अपने लंबे समय से सेवाएं देने वाले कर्मचारियों और निजी सहयोगियों को बड़ी धनराशि प्रदान की है। यह न केवल उनके दयालु और विनम्र व्यक्तित्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि वे अपने कर्मचारियों को परिवार का हिस्सा मानते थे।
कर्मचारियों के प्रति उदारता
रतन टाटा की वसीयत में कई कर्मचारियों को बड़ी धनराशि देने की बात कही गई है। उनके व्यक्तिगत स्टाफ, जिन्होंने वर्षों तक उनके साथ काम किया, उन्हें उदारतापूर्वक पुरस्कृत किया गया।
राजन शॉ (कुक) – ₹1 करोड़ की धनराशि दी गई, जिसमें ₹51 लाख का ऋण माफ भी शामिल है।
सुब्बैया कोनार (बटलर) – ₹66 लाख की राशि, जिसमें ₹36 लाख का ऋण माफ किया गया।
राजू लियोन (ड्राइवर) – ₹19.5 लाख की राशि, जिसमें ₹18 लाख का ऋण माफ किया गया।
डेलनाज़ गिल्डर (सचिव) – ₹10 लाख की धनराशि।
दीर्घकालिक सेवा देने वाले कर्मचारियों – ₹15 लाख प्रति कर्मचारी की धनराशि।
पार्ट-टाइम हेल्पर्स और कार क्लीनर्स – ₹1 लाख की सहायता राशि।
रतन टाटा का यह कदम दिखाता है कि वे अपने कर्मचारियों को केवल स्टाफ के रूप में नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। उनकी उदारता न केवल कॉर्पोरेट जगत के लिए एक मिसाल है, बल्कि यह भी बताती है कि एक सफल उद्योगपति को अपने कर्मचारियों की भलाई का भी ध्यान रखना चाहिए।
पालतू जानवर टीटो के प्रति स्नेह

रतन टाटा हमेशा से पशु प्रेमी रहे हैं। उनके पालतू कुत्ते टीटो के लिए भी उन्होंने अपनी वसीयत में विशेष प्रावधान किया।
पालतू कुत्ते टीटो के लिए ₹12 लाख की धनराशि निर्धारित की गई है।
इस राशि का उपयोग टीटो की देखभाल, चिकित्सा और खानपान के लिए किया जाएगा। यह दिखाता है कि टाटा न केवल इंसानों के प्रति, बल्कि जानवरों के प्रति भी संवेदनशील थे। उनके इस फैसले से पशु प्रेमियों के लिए भी एक प्रेरणा मिलती है कि पालतू जानवरों को केवल साथी के रूप में नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह देखना चाहिए।
परिवार और मित्रों के लिए प्रावधान
रतन टाटा की वसीयत केवल उनके कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने अपने परिवार और करीबी दोस्तों के लिए भी विशेष प्रावधान किए थे। उनकी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उनके निकट संबंधियों और वर्षों से उनके साथ जुड़े लोगों को सौंपा गया।
शिरीन और डीनना जीजीभॉय (सौतेली बहनें) – वसीयत के अनुसार, इन दोनों को उनकी संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा दिया गया है।
मोहिनी एम. दत्ता (पूर्व कर्मचारी) – मोहिनी एम. दत्ता को भी संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा सौंपा गया है, जिससे यह साफ होता है कि टाटा ने उन्हें केवल एक कर्मचारी के रूप में नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह देखा।
जिमी टाटा (भाई) – जिमी टाटा को जुहू स्थित बंगले का आधा हिस्सा दिया गया है, जो उनकी व्यक्तिगत संपत्तियों में से एक था।
मेहली मिस्त्री (मित्र) – मेहली मिस्त्री को अलीबाग स्थित संपत्ति सौंपी गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि टाटा अपने करीबी दोस्तों को भी अपनी संपत्ति में हिस्सेदार बनाना चाहते थे।
रतन टाटा का यह फैसला दर्शाता है कि वे सिर्फ उद्योगपति ही नहीं, बल्कि रिश्तों को निभाने वाले व्यक्ति भी थे। उन्होंने अपने जीवन में जो संबंध बनाए, उन्हें अपनी अंतिम इच्छाओं में भी महत्व दिया।
ऋण माफी और अन्य प्रावधान
रतन टाटा की वसीयत में कर्मचारियों और परिवार के लिए आर्थिक सहायता के साथ-साथ कुछ लोगों के ऋण भी माफ किए गए हैं। इससे उनकी उदारता और लोगों की मदद करने की प्रवृत्ति स्पष्ट होती है।
शांतनु नायडू (सहायक) – ₹1 करोड़ का शिक्षा ऋण माफ किया गया।
जेक मालाइट (पड़ोसी) – ₹23.7 लाख का ऋण माफ किया गया।
अन्य सहयोगियों – रतन टाटा ने अपने कपड़े और अन्य व्यक्तिगत वस्तुएं दान करने की भी इच्छा जताई थी।
उनके इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि वे केवल धन कमाने तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने अपने आस-पास के लोगों की जरूरतों को भी समझा और उनकी आर्थिक सहायता की।
निष्कर्ष
रतन टाटा की वसीयत न केवल एक उद्योगपति की संपत्ति के बंटवारे की कहानी है, बल्कि यह उनकी सोच, मूल्यों और सिद्धांतों को भी दर्शाती है। उन्होंने अपने कर्मचारियों को परिवार की तरह देखा, दोस्तों के साथ रिश्तों को महत्व दिया, और समाजसेवा को अपनी प्राथमिकताओं में रखा।
उनका यह निर्णय दिखाता है कि असली संपत्ति केवल धन नहीं, बल्कि लोगों के प्रति करुणा और उदारता होती है। उनके इस कदम से कई कॉर्पोरेट जगत के नेताओं और उद्यमियों को प्रेरणा मिल सकती है कि व्यवसाय केवल लाभ अर्जित करने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
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